
(गोविंदपुरा अब मुज़फ़्फ़रगर्ह जिला, पाकिस्तान). मिल्खा सिंह ने भारत और पाकिस्तान के विभाजन के दंगों में अपने माता पिता को खो दिया.
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के नरसंहार के दौरान उसकी आंखों के सामने उसके माता पिता और रिश्तेदारों को मार डाला गया.
एक 12 वर्षीय मिल्खा अपनी जान बचाने के लिए भाग गया और भारत आया. भारतीय सेना में शामिल होने की उनकी बहुत इच्छा लेकिन वे तीन बार रिजेक्ट किए गये. आख़िर में वह इंजीनियरिंग विभाग दाखिला के बाद चौथी बार सिलेक्ट हो गये.
यहीसे से उनके खेल जीवन असली शूरवात हुई. सिकंदराबाद मे उन्होने कठिन प्रशिक्षण लिया. वे हमेशा रात में अभ्यास किया करते थे.
मिल्खा सिंह ने 46.6 सेकंड के समय के साथ 1958 ब्रिटिश साम्राज्य और राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में एक स्वर्ण पदक जीतकर अपने करियर की शुरुवत की.
पटरियों पर चलने वाली अपनी अद्भुत गति के कारण, मिल्खा सिंह ने वर्ष 1962 में पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक को हराया . इसी कारण अयूब ख़ान पाकिस्तान के जनरल ने उसे ‘फ्लाइंग सिख’ उपनाम दिया. 2013 तक, राष्ट्रमंडल खेलों में वैयक्तिक एथलेटिक्स स्वर्ण पदक जीतने वाले वह एकमात्र भारतीय पुरुष खिलाड़ी थे.
भारत सरकराने मिल्खा सिंह को सन 1958 मे पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया.


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