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अपने बच्चे के लिए माँ शास्त्र का काम करती है और पिता शस्त्र का। दोनों का उद्देश्य अपने बच्चे के मंगलमय और उज्वल भविष्य का निर्माण ही होता है। माँ पुचकारकर बच्चे को समझाती है और पिता फटकार कर। जो काम एक माँ प्यार से करती है, वही काम एक पिता थोड़ा कठोरता दिखाकर करता है।

 जीवन न बिना शास्त्र के चलता है और न बिना शस्त्र के। जहाँ पर सही और गलत का निर्णय न हो वहाँ पर शास्त्र काम आता है और जहाँ पर निर्णय ही गलत हो वहाँ पर शस्त्र काम आता है। वह जीवन अवश्य ही गलत दिशा में बढ़ता है जिसमें ना शास्त्र का सम्मान हो और न शस्त्र का अंकुश।

 अत: हमारे जीवन में माँ रुपी शास्त्र और पिता रुपी शस्त्र का सम्मान बचा रहे ताकि हमारे जीवन का पथ प्रदर्शन होता रहे। कभी प्यार से और कभी मार से, कभी पुचकार से तो कभी फटकार से माँ और पिता दोनों हमारा जीवन संवारते

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