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एक बार उमर खय्याम अपने एक शिष्य के साथ बीहड़ से गुजर रहे थे। नमाज़ पढ़ने का समय हुआ तो दोनों ने नमाज़ पढ़ने के लिए ठीक-ठाक जगह देखनी शुरू कर दी। लेकिन तभी उन्हें कहीं दूर से आती शेर की आवाज सुनाई दी। उसे सुनकर शिष्य बेहद घबरा गया और तुरंत नजदीक के एक पेड़ पर चढ़ गया। लेकिन खय्याम तो अपने में डूबे थे। उन्होंने जैसे वह आवाज सुनी ही नहीं थी। वह एकाग्र होकर नमाज़ पढ़ने में लग गए। कुछ देर बाद शेर सचमुच वहां आ पहुंचा। लेकिन आश्चर्य, वह कुछ देर रुक कर चुपचाप आगे निकल गया।


उसके चले जाने के बाद शिष्य पेड़ से नीचे उतर आया। इस तरह नमाज़ खत्म होने के बाद दोनों आगे बढ़े। थोड़ी देर बाद जब उमर खय्याम को एक मच्छर ने काटा, तो उसे मारने के लिए उन्होंने अपने गाल पर जोर से चपत लगाई। यह देख वह शिष्य बोला,'गुरुदेव अभी-अभी जब शेर आपके करीब आया था, तब आप बिल्कुल नहीं घबराए, लेकिन एक मच्छर के काटे जाने पर आपको इतना गुस्सा आ गया।'

ख्य्याम ने उत्तर दिया,'तुम कहते तो ठीक हो, लेकिन यह भूल रहे हो कि जब शेर आया था तब मैं खुदा के साथ था, जबकि मच्छर काटे जाने के समय मैं एक इंसान के साथ था। यही वजह है कि मुझे शेर से डर नहीं लगा और मैं एक मच्छर से घबरा गया। इंसान भगवान के साथ हो तो हमेशा सुरक्षित रहता है। जबकि मनुष्य के साथ उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।' शिष्य समझ गया कि खुदा के साथ का असल अर्थ क्या है। उससे इंसान की हिम्मत बढ़ जाती है।

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