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एक वृद्ध भिखारी दिनभर घूमकर खूब सारा  अनाज इक्कठा करता।  लोगों को वह उसकी जरुरत से अधिक लगता था।  एक दिन लोगो ने उससे पूछा- इतने सारे अनाज का क्या करते हो ? वह बोला - मुझे चार सेर अनाज नित्य मिलता है।  एक सेर मैं एक राक्षसी को देता हूँ।  एक सेर अनाज उधार देता हूँ।  एक सेर बहते पानी में बहा देता हूँ।  और एक सेर से मंदिर के देवता को भोग लगाता हूँ। लोगो को  कुछ समझ में नहीं आया।  वे उसे पाखंडी समझकर राजा  के पास  ले गए । राजा से वह बोला- राक्षसी मेरी पत्नी है , जो  केवल खाना , पहनना और सोना जानती है। किन्तु उसे खिलाना मेरा कर्तव्य हैं।  इसलिए एक सेर अनाज उसे देता है।  उधार मैं अपने पुत्र को देता हूँ।  वह छोटा है इसलिए उसका पेट भरना मेरा दाय्तित्व हैं।  जब मैं बूढा हो  जाऊँगा और वह जवान हो जाएगा तो मुझे कमाकर  खिलायेगा। इसे मैं उधार देना कहता हूँ।  मेरी बेटी जब बड़ी होगी तो अपने पति के घर चली जाएगी।  उसे खिलाने का मतलब बहते पानी में अनाज फेंकना ही है, किन्तु वह मेरा धर्म भी है।  मेरा यह शरीर मंदिर है और उसमे बसने वाले प्राण मंदिर के देवता है।  यदि इन्हें भोग न लगाऊ तो मेरे परिवार का गुजर बसर कैसे हो ?

राजा भिखारी की हाजिर जवाबी से प्रसन्न हुआ और कहा - तुम तो पंडित जान पड़ते हो।  आज से तुम्हें अपना विशेष सलाहकार नियुक्त करता हु। 
इस प्रकार भिखारी ने अपनी चतुराई से अपनी जीवन की कायापलट कर दी।  

हाजिर जवाबी एक ऐसा गुण है जो कोगो को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।  यदि इसे अपने स्वभाव का  अंग बना ले तो अनेक अवसरों पर सफलता मिलती है।

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