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हाजी मुहम्मद एक मुस्लिम संत थे। वे कई बार हज यात्रा करके आए थे और नियमित पांचों वक्त की नमाज पढ़ते थे। एक दिन उन्होंने एक स्वप्न देखा, एक फरिश्ता स्वर्ग और नर्क के बीच में खड़ा है और वह सभी प्राणियों को उनके कर्म के अनुसार स्वर्ग और नर्क भेज रहा है।

जब हाजी साहब उस फरिश्ते से रू-ब-रू हुए तो फरिश्ते ने उन्हें नर्क की ओर जाने के लिए कहा, हाजी साहब को यह बात ठीक नहीं लगी, उन्होंने कहा कि मैनें साठ बार हज किया है।

फरिश्ते ने कहा, ये सच है लेकिन जब भी तुमसे कोई तुम्हारा नाम पूछता था तो तुम बड़े ही फख्र से कहते थे कि मैं हाजी मुहम्द हूं। इसलिए तुम्हारा हज करने का सारा पुण्य नष्ट हो गया। हाजी साहब जब नींद से जागे तो उन्होंने गर्व व दिखावे का त्याग कर दिया।








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