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कन्नड़ लेखक एच. योगनसिंहम् ने महर्षि कर्वे ( भारतरत्न 1958 धोंडो केशव कर्वे) की आत्मकथा 'लुकिंग-बैक' का कन्नड़ में अनुवाद किया था। उनसे सिर्फ पत्र व्यवहार द्वारा ही परिचय था पर महर्षि कर्वे से वह कभी मिले नहीं थे।

एक बार जब वे पूना गए तो वे महर्षि कर्वे से भेंट करना चाहते थे। उनकी यह मनोकामना पूरी हुई। उनकी भेंट कर्वे से उनके आवास पर हुई। औपचारिक बातों के बाद महर्षि कर्वे ने उनसे घरेलू सवाल पूछा, 'आपके कितने बच्चे हैं?'

लेखक की तरफ से जवाब मिला, 'आठ' महर्षि ने कहा, 'तो इसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्र को आपकी देन मुझसे दोगुनी है।' योगनरसिंहम चकरा गए। महर्षि की अपेक्षा उनकी राष्ट्र सेवा दुगनी? इस तरह उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि में महर्षि की तरफ देखा।

उन्होंने महर्षि की तरफ देखा। मुस्कुराते कर्वे बोले, 'आठ...चार के दोगुने आठ' हुए कि नहीं और महर्षि हंसने लगे। महर्षि कर्वे आखिर में थे गणित के प्राध्यापक। उनका गणित आगंतुक की समझ में आ गया और वे अपनी हंसी न रोक पाए।

संक्षेप में

जिंदगी में हंसने के बहाने ढूंढ लेना ही चाहिए। ऐसा बिल्कुल भी नहीं कि, यदि आप किसी विषय के विद्वान व्यक्ति से मिलने जा रहे हैं। तो ये बिल्कुल भी अनुमान न लगाएं वह बहुत ही गंभीर होंगे। हो सकता है वो आपके आने के कारण थोड़ा मुस्कुरा दें।








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