
प्रभाव से जो जीता है,
वह जीता ही नही ।
और सारी दुनिया करीब करीब
प्रभाव से जीती है।
तुम जिसके प्रभाव मे पड गए,
संयोगवशात्,
उसके ही रंग मे रंग जाते हो।
तुम्हारी अपनी कोई निजता नहीं है ।
तुम्हारा अपने भीतर
कोई स्वयं का बोध नहीं है ,
कि तुम सोचो, विचारों ,
विमर्श करो, निर्णय लो ।
तुम्हे अपना स्मरण ही नहीं है ।
तुम्ह तो दोहराये जाते हो
जो तुम्हे कहा गया है ।
गीता पकडा दी तो
गीता दोहराते हो,
कुरान पकडा दी
तो कुरान दोहराते हो।
ना तुम्हे गीता से कुछ लेना देना
और ना कुरान से।
न तुम्हारे प्राणो मे गीता का
अनुनाद उठ रहा है
और ना हि कुरान का संगीत ।
क्योकि प्रभाव कभी भी
तुम्हारे स्वभाव तक नही पहुंच सकते...
!! ओशो !!


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