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बचपन में ही सुभाष चंद्र बोस ने जो आत्मविश्वास और त्याग की भावना दिखाई, वह अपने-आप में एक मिसाल है। शुरू से ही उनमें अपने समाज के लिए बहुत कुछ करने की ललक थी। उनके स्कूल में अंग्रेज छात्रों की संख्या अच्छी-खासी थी। एक बार कुछ भारतीय और अंग्रेज छात्र खेल रहे थे। लड़कों के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी हो गई। सुभाष वहां आ पहुंचे और उन्होंने एक अंग्रेज लड़के से पूछा, 'क्या बात है?'

उस अंग्रेज लड़के ने कहा, 'मैं भारतीय लड़कों से बात नहीं करता। मैं उन्हें ठोकर मारकर गिरा देता हूं।' सुभाष ने कहा, 'हिंदुस्तानी लड़के भी अंग्रेज लड़कों को ठोकर मारकर गिरा देते हैं।' यह कहते हुए सुभाष ने अंग्रेज लड़के को ठोकर मारकर गिरा दिया। एक बार शहर में हैजा फैल गया। लोग बड़ी संख्या में मरने लगे तो सुभाष अपने कुछ साथियों के साथ गंदी बस्ती में रह रहे लोगों की सेवा करने लगे।
सबने मिलकर बस्ती की सफाई की और लोगों को साफ खाना और पानी के लिए हिदायत दी। उन्होंने बीमार लोगों में दवाइयां बांटीं। उनका ये सेवा कार्य कुछ लोगों को नागवार गुजरा और उन्होंने अमीरी-गरीबी के भेदभाव का आरोप लगाकर उनका विरोध किया। इनका नेता छंटा हुआ गुंडा हैदर था। उसने सुभाष और उनके साथियों को बस्ती में आने से मना कर दिया।
लेकिन थोड़े दिन बाद हैदर का परिवार भी हैजा की चपेट में आ गया। उन सबकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। अगर आए तो सुभाष और उनके साथी। वे उसके घर पहुंचे और परिवार के लोगों को भोजन और दवाइयां दीं। हैदर शर्म से सिर झुकाए खड़ा था। सुभाष ने उससे कहा, 'इस गलती का सुधार यही है कि तुम भी हमारे साथ आ जाओ और हमारे सेवाकार्य में जुट जाओ।' हैदर ने सुभाष से क्षमा मांगी और लोगों की सेवा में लग गया।

Source by NBT

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