
यज्ञ के बाद आचार्य छात्रों को समझा रहे थे, 'हमें प्रकृति और वातावरण से सीख लेकर निरंतर कर्मशील बनना चाहिए। देखो, प्रकृति रात-दिन अपने कार्यक्रम में व्यस्त रहती है। दृढ़ संकल्पी व्यक्ति जैसा संकल्प करे वैसा बन सकता है।' आचार्य की इस बात के साक्षात उदाहरण के रूप में भारत के सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजम को देखा जा सकता है। एक सामान्य निर्धन परिवार में जन्म लेकर भी केवल अपनी साधना, दृढ़ संकल्प के बल पर उन्होंने उपलब्धियों के आकाश को छू लिया।
रामानुजम की मां चक्की पीसकर अपना और अपने बेटे का पालन-पोषण करती थी। बालक को तो कहीं पढ़ने की सुविधा तक नहीं थी। स्कूल में नाम न लिखवाए जाने के बावजूद, कक्षा के बाहर बैठे-बैठे ही वह अध्यापक के पाठ को हृदयंगम कर लेता था और रेखागणित विषय की जटिलतम समस्याओं को आराम से सुलझा लेता था। टॉमस हार्डी ने उससे गणित के कठिन सवाल किए और उन कठिन सवालों के उसके द्वारा दिए सरल उत्तर को देखकर हार्डी चमत्कृत हो गए।
उसका यह गुण देखकर वह बालक को कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में ले गए और वहां आगे उसकी शिक्षा का प्रबंध किया। वहां उस युवक ने कुछ ही वर्षों में सब परीक्षाएं उत्तीर्ण कर लीं। गणित की एमएससी की परीक्षा में संपूर्ण विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लिया। उन्होंने अपनी लगन और मेहनत से टॉमस हार्डी और दूसरे गणितज्ञों को भी पीछे छोड़ दिया। केवल 33 वर्ष की छोटी आयु जीने वाले रामानुजम अपने छोटे से जीवनकाल में ही आधुनिक युग के एक श्रेष्ठतम गणितज्ञ बने। उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान संख्याओं के सिद्धांत का रहा। उन्होंने दृढ़ संकल्प, लगन और साधना की बदौलत भारत के ही नहीं, विश्व के महान गणितज्ञ के रूप में ख्याति पाई।
source by NBT

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