
रविवार के दिन बड़े गुस्से से, मैं घर छोड़ कर निकल आया। अब तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा। इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन कर के निकल गया।
जब
मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है।
आज तो में हिम्मत करके, पापा का पर्स भी उठा लाया। पर्स जिसे वो किसी को
हाथ तक न लगाने देते, मम्मी को भी नही। इस पर्स मैं जरुर, पैसो की हिसाब की
डायरी होगी। पता तो चले कितना माल छुपाया है पिताजी ने हम सबसे।
जैसे
ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है।
मैंने जूता निकाल कर देखा कि मेरी एडी से थोडा सा खून रिस रहा था। कोई कील
घुस गयी थी। दर्द से गुस्सा और बढ़ गया
जैसे ही कुछ दूर चला, मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था। पाँव उठा के देखा तो जूते का तला में छेद थे।
जैसे तैसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी। मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये।
मैंने
पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी। उस पर लिखा था कि लैपटॉप के लिए 40 हजार
उधार लिए दफ़्तर के साथी से लिए। मुझे बिजली का करैन्ट लगा क्योंकि लैपटॉप
तो मेरी जीद पर ही मेरे लिए ख़रीदा गया था।
दूसरा
एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे मेरे को पिछले महीने मेरे लिए ख़रीदे गए
ब्रडिड जुतो का बिल था। माँ पिछले चार महीने से हर पहली को पिताजी को कहती
थी "एेजी सुनो आप नए जुते ले लो" ...
और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."
तीसरी
पर्ची थी १५ दिन पुरानी पेपर की कटिंग। पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में
नयी मोटर साइकिल क़िस्तों में ले जाइये। पढ़ते ही दिमाग घूम गया, पापा का
१४ साल पुराना स्कूटर जिस वो रोज़ लाद कर हमारे लिए फल, सब्ज़ी और राशन
लाते है। ओह्ह्ह्ह
मैं घर की और भागा। पांवो में वो कील अब भी चुभ रही थी। मैं घर पहुँचा, न पापा थे न स्कूटर। ओह्ह्ह नही, मैं समझ गया कहाँ गए।


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