
उसने कहा मेरे धन्यभाग आओं में प्रतिक्षा ही कर रहा था, जरुर तुम्हैं पर्मात्मा ने ही भेजा होगा उसकी करुणा अपरंमपार है उसने मेहमान को बिठाया और थाली लगाई भोजन परोसा और महमान भोजन शुरु करने ही जा रहे थे की उसने देखा कि इसने तो अल्लाह का नाम ही नहीं लिया । भोजन के पहले अल्लाह का नाम तो लेना चहिये प्रार्थना तो करनी चाहिये । उसने उसका हाथ पकड लिया इससे पहले की कोर मूहँ में जाये उसने कहा रुको आल्लाह का नाम नहीं लिया उस आदमी ने कहा में अल्लाह आदि में भरोसा नहीं करता, कोई ईश्वर नहीं है तो में क्यों नाम लू । सुफी फकीर ने कहा फिर भोजन न कर सकोगे और तभी अचानक अल्लाह की आवाज सूनाई पडी ‘अरे पागल में इस आदमी को सत्त्तर साल से भोजन दे रहा हू और इसने एक भी बार मेरा नाम नही लिया और तुने इसका बढा हुआ हाथ पकड लिया ये भुखा बूढा भोजन, और भोजन में भी शर्त बंदी । भोजन में भी तुने शर्त, तुने शर्त लगा दी प्रेम में कोई शर्त नहीं होती |
तुझे अनुग्रहीत होना चाहिए कि इसने तेरा निमंत्रण स्विकार किया अनुग्रह तो दूर रहा तु तो इसपर शर्त थोपने लगा तुझसे तो यह बूढा बेहतर है ये भुखा रहने को रहने को राजी है लेकिन अपने असुल के खिलाफ जाने को राजी नहीं है और जिसको में सत्त्तर साल से भोजन करा रहा हू तु उसे एक दिन भोजन नहीं करा सका । फकीर उस बुढे के चरणो मे गिर पडा कहा आप भोजन करे मुझसे भुल हुई थी धर्म के नाम पर शर्त नहीं लगाई जा सकती परमात्मा बेशर्त है । उसकी क्रपा और करुणा तुह्मारे किसी योग्यता के कारण नहीं होती उसकी करुणा उसका स्वभाव है तुम्हारा सवाल नहीं है ।
गुलाब का फूल गुलाब की गंद देगा जूही का फूल जूही की गंद देगा वह यह फिकर नहीं करता की पास से जो निकल रहा है वो इसके पात्र है या नहीं, सुरज निकलेगा तो रोशनी होगी आस्तिक के लिए भि और नास्तिक के लिए भी, साधु के लिए भी असाधु के लिए भी, यह सुरज का लक्षण है वो कुछ शर्त नहीं करता की नास्तिक के लिए अंधेरा रहेगा और आस्तिक के लिए दिन हो जाएगा ।



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