
भारतीय परंपरा में मंदिर जाने का बहुत महत्व है। धर्म और पूजा पाठ के अलावा मंदिर में कदम रखते ही हमे चौमुखी लाभ मिलते है।
मंदिर जाने से हमारा समाजिक दायरा बड़ता है और हमे अन्य धार्मिक प्राणियों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
हमारे मंदिर जाने से समाज संगठित होता है और धर्म, देश और हमारे संस्कारों कि रक्षा तथा उन्नति होती है।
हम मंदिर मे जा कर सूर्य को जल अर्पित करते है जिसकी अलौकिक किरणो से हमे बहुत लाभ होता है।
हम
पीपल के पास जा कर जल अर्पण करते है जिससे हमे वहाँ फैली ख़ास तरह की
आक्सिजन मिलती है। पीपल ही एक अकेला दिव्य वृक्ष है रात्रि मे भी चंद्रमा
की किरणों मे विध्मान सुर्य फोटोन से फ़ोटोविषलेशन कर कार्बनडाईओक्साईड CO2
को विघटित करता है और विशेष आक्सिजन पैदा करता है तथा कार्बन को अपने तने
में एकत्रित कर लेता है।
जब हम मंदिर में आरती और कीर्तन के दौरान ताली बजाते है तो हमे एक्यूप्रेशर से लाभ मिलता है।
मंदिर मे जब हम दण्डवत हो कर माथा धरती पर लगाते है तो हमारा घमण्ड चूर चूर होकर धरती मे समाहित हो जाता है।
चालीसा
और आरती के जाप से हमारी वाणी मे दिव्यता आती है। वैज्ञानिक शोध से साबित
हुआ है कि ओम् के उच्चारण से हमारा चित एकाग्र होता है ।
मंदिर मे हमारे द्वारा दिए गये दान सामाजिक कार्यो में लगते है जिससे हमारे मन मे शान्ति आती है और हमे पुण्य अर्जित होता है।
मंदिर मे नित दिन जाने से नये लोगों से प्ररिचय होता है और कई ज़रूरी जानकारी मिलती है।
मंदिर की घंटी के श्रवण का फ़ायदा
मंदिर
के के बाहर एक विशेष धातू के सम्मिश्रण से बनी घंटी लगी होती हैं। ये घंटी
इस ढंग से लगी होती हैं कि श्रद्धालु ठीक इसके नीचे खड़े होकर इसे बजाता
है। घंटी के बीच का हिलने वाला गोला ठीक हमारे मस्तिष्क के ऊपर बिचो-बीच
होना चाहिए।
इस
घंटी से निकलने वाली ध्वनि हमारे मस्तिष्क की दाईं और बाईं तरफ से एकरूपता
बनाती है। घंटी की ७ सेकंड तक की टन्कार हमारे शरीर के सातों आरोग्य
केंद्रों को क्रियाशील करती हैं।
जब
हमारा ध्यान मंदिर की घंटी की लुप्त होती ध्वनि पर केन्द्रित होता है तो
हमारा मन सभी संसारिक विषमताओ से हट कर प्रभु के चरणों मे अर्पित हो जाता
है। मंदिर से बाहर आते हुए हम फिर से घंटी बजा कर हम संसारिक जिम्मेवारियो
मे वापस आ जाते है।
आरती
मे बजाये जाने वाली छोटी घंटी की विशेष प्रतिध्वनि से हमारी पित्त
सन्तुलित होती है। शायद इसी कारण से गऊमाता के गले मे भी घंटी बाँधी जाती
है क्योंकि ये सर्वमान्य है गाय मे पित्त ज्यादा होती है।
इसी प्रकार आरती के बाद शंख बजाया जाता जो श्रद्धालुओ के लिए बहुत सुखदायी और स्वास्थ्य वर्धक है।
आरती की ज्योत से स्पर्श का फ़ायदा
आरती
के बाद जब हम ईश्वर का आशीर्वाद ले रहे होते हैं तो हम कपूर या दीये की
आरती पर अपना हाथ घुमाते हैं। इससे हमारी हथेली का अग्नि स्पर्श होता है जो
हमारे ख़ून को ज्योत की दिव्य उषमता देता है।
कपूर
और देसी गौधृत के दिव्य प्रताप से हमारे अन्दर पल रहे सभी जीवाणु संक्रमण
समाप्त हो जाते है। हाल ही में फैले स्वाइन फुल्यू के जैविक संक्रमण से
बचने मे कपूर की अहम भुमिका की बहुत चर्चा हुई थी।
ज्योत
पर फरने के उपरान्त हम अपनी ऊष्म हाथेलियो को आंखों से लगाते हैं और हमें
गर्माहट महसूस होती है। यह गर्माहट से हमारी आँखो कि सुक्षम इद्रिसाँ खुल
जाति है और उन में ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है जिससे हमारी आँखो कि
ज्योति मे वृद्धि हो ।
ज्योत पर हथेली रखना हमारे द्वारा जाने अन्जाने मे किये गए किसी भी प्रकार के पाप के प्रयायचित का भी प्रतीक है।
मंदिर में फैली दिव्य सुगंध का फ़ायदा
हम
मंदिर में भगवान को अर्पित करने के लिए फूल लेकर जाते हैं, जो पवित्र होते
हैं और उनसे अच्छी खुशबू आ रही होती है। मंदिर में अन्य श्रद्धालु द्वारा
अर्पित सभी फूलो से वहाँ एक बग़ीचे जैसा खूशबूदार माहौल बन जाता है। कपूर
और अगरबत्ती से भी भरपुर खुशबू निकल रही होती है। इन सब दिव्य सुगंध से
हमारी इंद्रियाँ सक्रिय हो जाती हैं और स्वास्थ्य (aromatherapy) और उत्साह
वर्धन होता है।
मंदिर मे प्राप्त प्रसाद का फ़ायदा
मंदिर
में भगवान के दर्शन के बाद हमें तुलसी, चरणामृत और प्रसाद मिलता है।
चरणामृत एक दिव्य पेय प्रसाद होता है जिसे गाय के दुग्ध, दही, शहद, मिस्री,
गंगाजल और तुलसी से बना कर विशेष धातु के बर्तन में रखा जाता है। आयुर्वेद
के मुताबिक यह चरणामृत हमारे शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखता है।
चरणामृत के साथ दी गई तुलसी हम बिना चबाए निगल लेते है जिससे हमारे सभी रोग
ठीक हो जाते है।
मंदिर में फैली पुरे ब्रह्मांड की उर्जा से लाभ
पूजा
के बाद जब हम भगवान की मूर्ति की परिक्रमा करते हैं तो वहॉ मौजूद समस्त
सृष्टि की सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। ये पुरे ब्रह्मांड की दैवीय
उर्जा गर्भस्थान के गुम्बद के शिखर पर विघ्यमान धातु के कलश से प्रवाहित
हो कर ईश्वर की मूर्ति के नीचे दबाई गई धातु पिंड तक जाती है और धरती में
समा जाती है। गर्भस्थान की प्ररिक्रमा के दोरान हमे इस ब्रह्मांडिय उर्जा से लाभ मिलता है।
मंदिर
की भुमि को इसी सकारात्मक ऊर्जा का वाहक माना जाता है। यह ऊर्जा भक्तों
में पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते
हैं।
मंदिर जाने से संकल्प शक्ति का विकास
हम
रोज़ मंदिर जा कर अपने जीवन और व्यापारिक उद्देश्यों को दोहराते है भगवान
के समक्ष उन्हे पुरा करने का संकल्प लेते है और ईश्वर से हमारी सफलता का
आशिर्वाद माँगते है।
हमे
मंदिर जाने मे पहले उस दिन की कार्य सुची लिख लेनी चाहिए और उसे मंदिर ले
कर जाना चाहिए और उन सभी कार्य को सुचारू रूप से आज पुरा करने का संकल्प
करना चाहिए।
मंदिर जाने से में गो ग्रास और गो रक्षा का लाभ
आजकल
शहर मे धरो मे गो माता रखने का प्रवधान नही है पर हम मंदिर जा कर गो ग्रास
दे सकने के अपने संस्कारों को जारी रख सकते है। हर मंदिर मे सबही आरती के
बाद गो रक्षा का संकल्प ज़रूर दोहराया जाता है।
इस
प्रकार मंदिर में केवल पाँच मिनट के लघु समय में किये जाने वाले सभी
प्रकलनो से हमारा स्वास्थ्य में वर्धन होता है, सोच सकारात्मक बनती है, मन
की शान्ति मिलती है, इच्छाओं की पूर्ति होती है, संतुष्टि का अनुभव होता
है, उत्साह में वृद्धि होती है, व्यापार मे मुनाफ़ा होता है और समाज मे
प्रतिष्ठा बढ़ती है।


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