
अमेरिका में जब रुजवेल्ट, राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए तो उनकी पत्नी ने राष्ट्रपति भवन (व्हाइट हाउस) को अपने पति की रुचि के अनुसार ही व्यवस्थित किया।
जब वे कार्यालय को अच्छी तरह से व्यवस्थित कर चुकीं तो शासकीय कार्यों में भी उनकी पत्नी भी हाथ बंटाने लगीं।
एक दिन अमेरिका के प्रसिद्ध समाचार पत्र के संपादक का फोन आया तो श्रीमती रुजवेल्ट ने फोन उठाया। समाचार पत्र के संपादक ने फोन पर कहा, 'मैं अमुक व्यक्ति बोल रहा हूं। मुझे राष्ट्रपति की निजी सचिव मिस मीलवीना से बात करनी हैं।'
श्रीमती रुजबेल्ट, 'थोड़ा मुस्कुराईं और कहा, 'मिस मीलवीना तो आज छुट्टी पर हैं। उनके स्थान पर मैं कार्य कर रही हूं। यदि काम को मेरे योग्य समझें तो मुझे बता दें।'
तब संपादक ने कहा, 'आप कौन बोल रहीं हैं?'
उत्तम मिला, 'श्रीमती रुजबेल्ट।'
उस प्रतिष्ठित समाचार पत्र का संपादक श्रीमती रुजबेल्ट का सच्चा बडप्पन, शालीनता और शिष्टता से बात करने के तरीके को देखकर हैरान हो गया।
संक्षेप में
हम चाहें कितने भी बड़े क्यों न बन जाएं लेकिन हमें कभी भी पद के दंभ में थोथी अकड़ में नहीं जीना चाहिए।

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