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कृशा गौतमी श्रावस्ती के निर्धन परिवार में जन्मी थी। जितनी वह निर्धन थी, उतनी ही सुंदर। सुंदरता के कारण उसका विवाह एक धनी व्यक्ति से उसका विवाह हो गया। लेकिन वहां उसका हमेशा अपमान होता था। जब पुत्र हुआ तो सम्मान होने लगा।

समय बदला और उसके पुत्र की अचानक ही मृत्यु हो गई। गौतमी को इतना दुख हुआ कि वह विक्षिप्त हो गई। वह शव को छाती से लगा कर इधर-उधर भटकने लगी। अंत में तथागत के पास पहुंची और पुत्र को जीवित करने का हठ करने लगी।

तथागत ने उससे कहा, तुम उस घर से सरसों के दाने ले आओ, जहां कभी किसी की मृत्यु नहीं हुई हो। गौतमी प्रत्येक घर में गई लेकिन कहीं ऐसा घर नहीं मिला जहां कभी मृत्यु नहीं हुई हो। वह समझ गई इस संसार में जो आया है उसे मरना ही होगा।

इस तरह तथागत ने गौतमी को दिव्य ज्ञान देते हुए उसकी समस्या का निराकरण किया।








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