0



एक बार बादशाह अकबर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए घूमने निकले। उस समय उनके साथ चार दरबारी थे। नमाज का समय हो गया था। गांव का मार्ग छोड़कर ऐसी कोई जगह न थी, जहां नमाज पढ़ी जा सके। इसलिए मार्ग पर ही। जायेनमाज ( नमाज पढ़ने के लिए बिछाने वाली चटाई) बिछा दी गई।

बादशाह अकबर नमाज पढ़ने लगे, जबकि उनके चारों दरबारी नजदीक ही पेड़ों की ओर चले गए। तभी वहां एक युवती पहुंची। वह बादशाह अकबर के जायेनमाज पर पैर रखते हुए चली गई। बादशाह अकबर को बहुत क्रोध आया, लेकिन नमाज पढ़ते समय वह कुछ कह न सके।

कुछ देर बाद वह युवती वापस लौटी। अकबर भी वहीं मौजूद थे। उन्होंने उस लड़की को बुलाकर कहा, 'ऐ लड़की! क्या तुझे पता नहीं था। में नमाज पढ़ रहा था और तू जायेनमाज पर पैर रखते हुए चली गई।'

युवती बोली, 'जहांपना, मेरे शौहर परदेश गए थे। अनेक वर्षों के बाद जब उनके आने की खबर मिली तो मैं अपनी सुध-बुध खोकर उनसे मिलने के चल दी। मुझे नहीं मालूम रास्ते में कौन था, क्या आया।'

लेकिन आप तो अल्लाह का ध्यान कर रहे थे। फिर आपने मुझे कैसे देखा ?

उस युवती की बात सुनकर बादशाह अकबर को अपनी भूल का अहसास हुआ। उन्होंने उसे माफ करके सच्चे मन से इबादत करने का संकल्प लिया।

संक्षेप में

यदि मनुष्य इबादत या आराधना में सच्ची एकाग्रता को छोड़कर अन्य बातों में रम जाता है, तो उपासना में लाभ के बजाए हानि पहुंचाती है। आंतरिक भाव से परम पिता परमेश्वर को चाहना ही साधना का रहस्य है। सच्ची एकाग्रता से परिपूर्ण प्रार्थना ही भक्त को परमेश्वर तक पहुंचाती है।








आपको पोस्ट पसंद आई हो तो Youtube पर क्लिक करके Subscribe करना ना भूलें

आपको पोस्ट कैसी लगी कोमेन्ट और शॅर करें

Post a Comment

 
Top